नवरात्रि में दुर्गासप्तशती का पाठ: गहन और विस्तृत विधि-विधान (महाकाली तंत्र द्वारा)
दुर्गासप्तशती का पाठ नवरात्रि में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें माँ दुर्गा के 700 श्लोकों का पाठ किया जाता है, जो तीन खंडों में विभाजित हैं - प्रथम, मध्य, और उत्तर खंड। महाकाली तंत्र में दुर्गासप्तशती का पाठ बहुत ही विधिपूर्वक और शास्त्रीय नियमों का पालन करते हुए किया जाता है। पाठ से पहले, इसके दौरान और बाद में कुछ विशेष नियमों और सावधानियों का पालन करने से पाठ का प्रभाव अत्यधिक बढ़ जाता है।
यहाँ हम दुर्गासप्तशती पाठ की संपूर्ण प्रक्रिया को और गहराई से समझाएंगे ताकि साधक को सही मार्गदर्शन मिल सके।
1. पाठ की तैयारी: पवित्रता और स्थान का चयन
दुर्गासप्तशती पाठ की तैयारी में विशेष पवित्रता और स्थान का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है। महाकाली तंत्र में इसे इस प्रकार समझाया गया है:
- स्थान: पाठ के लिए एक पवित्र और शांत जगह का चयन करें। यह स्थान घर का पूजा कक्ष हो सकता है या कोई ऐसा स्थान जहाँ शांति और पवित्रता बनी रहे। उस स्थान की शुद्धि के लिए गंगाजल या गोमूत्र का छिड़काव करें। यह सुनिश्चित करें कि उस स्थान पर कोई भी अवांछित ध्वनि या विघ्न न हो।
- स्नान और वस्त्र: पाठ से पहले स्नान करना अनिवार्य है। स्नान से मन और शरीर दोनों शुद्ध होते हैं, जिससे साधक पाठ में ध्यान केंद्रित कर पाता है। स्नान के बाद सफेद, लाल, या पीले वस्त्र पहनें। ये रंग माँ दुर्गा को प्रिय हैं और साधना में शुभ माने जाते हैं।
- दुर्गा प्रतिमा या चित्र: माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र को साफ आसन पर स्थापित करें। प्रतिमा के सामने एक दीपक रखें और धूप-दीप जलाएं। पूजा स्थल पर पुष्प, फल, नैवेद्य, और अन्य पूजन सामग्री रखें।
2. संकल्प और माँ का ध्यान
संकल्प लेना दुर्गासप्तशती पाठ की सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। संकल्प का अर्थ है अपनी इच्छा और उद्देश्य को माँ दुर्गा के समक्ष प्रकट करना। महाकाली तंत्र के अनुसार, संकल्प के बिना कोई भी साधना या पाठ सफल नहीं होता।
- संकल्प विधि: एक तांबे के पात्र में जल, कुछ चावल के दाने और एक पुष्प रखें। दाहिने हाथ में इसे लेकर माँ दुर्गा के सामने संकल्प लें:
"ॐ विष्णु: विष्णु: विष्णु:। मम कार्य सिद्धये, दुर्गासप्तशती पाठं करिष्ये।"
इसका अर्थ है कि आप अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए दुर्गासप्तशती का पाठ कर रहे हैं।
- माँ का ध्यान: माँ दुर्गा के ध्यान में निम्नलिखित श्लोक का पाठ करें:
"या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"
ध्यान के दौरान मन को माँ के दिव्य स्वरूप में केंद्रित करें और उनकी शक्ति का अनुभव करें।
3. दुर्गासप्तशती का पाठ
दुर्गासप्तशती में 13 अध्याय हैं, जिन्हें नौ दिनों में विभाजित कर पाठ किया जा सकता है। प्रत्येक अध्याय माँ के एक विशिष्ट रूप और उनके द्वारा की गई लीलाओं का वर्णन करता है।
पाठ की विभाजन और विधि
पहले दिन: पहले और दूसरे अध्याय का पाठ करें। इसमें महाकाली की महिमा का वर्णन है।
दूसरे दिन: तीसरे और चौथे अध्याय का पाठ करें।
तीसरे दिन: पाँचवें और छठे अध्याय का पाठ करें।
चौथे दिन: सातवें अध्याय का पाठ करें। यह पाठ माँ दुर्गा की अनंत शक्तियों और उनके अद्वितीय पराक्रम का वर्णन करता है।
पाँचवे दिन: आठवें और नौवें अध्याय का पाठ करें।
छठे दिन: दसवें अध्याय का पाठ करें।
सातवें दिन: ग्यारहवें और बारहवें अध्याय का पाठ करें।
आठवें दिन: तेरहवें अध्याय का पाठ करें। इस अध्याय में माँ दुर्गा के विजय का उल्लेख है।
नौवें दिन: पाठ के सभी अध्यायों का एक साथ पुनः पाठ करें या फिर हवन करें।
बीज मंत्रों का जाप
प्रत्येक अध्याय के आरंभ और अंत में निम्नलिखित बीज मंत्रों का जाप करें:
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥"
4. अर्गला स्तोत्र, कीलक और कवच का पाठ
महाकाली तंत्र में दुर्गासप्तशती पाठ के पहले अर्गला स्तोत्र, कीलक और कवच का पाठ अनिवार्य माना गया है। यह पाठ की शक्ति को बढ़ाता है और साधक की रक्षा करता है।
- अर्गला स्तोत्र: यह पाठ माँ दुर्गा की महिमा का वर्णन करता है और साधक को ऊर्जा प्रदान करता है।
- कीलक: यह पाठ दुर्गासप्तशती के गूढ़ रहस्यों को खोलता है और साधक को विशेष सिद्धियाँ प्राप्त करने में सहायक होता है।
- कवच: यह पाठ साधक को नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है।
5. हवन
नवरात्रि के नौवें दिन दुर्गासप्तशती पाठ के साथ हवन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। हवन के लिए विशेष सामग्री जैसे घी, गुग्गल, कपूर, हवन समिधा, और नारियल का उपयोग करें। हवन के दौरान 'स्वाहा' के साथ दुर्गासप्तशती के मंत्रों का उच्चारण करें। हवन साधना को संपूर्ण और फलदायी बनाता है।
6. आरती और क्षमा प्रार्थना
दुर्गासप्तशती पाठ के बाद माँ दुर्गा की आरती करें। आरती के दौरान घंटी और शंख बजाएं, जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो। अंत में, यदि पाठ के दौरान कोई त्रुटि हुई हो तो माँ दुर्गा से क्षमा याचना करें।
महत्वपूर्ण सावधानियाँ
1. पाठ के दौरान संयम, शुद्धता, और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
2. माँ दुर्गा के प्रति पूर्ण श्रद्धा और समर्पण बनाए रखें।
3. दुर्गासप्तशती पाठ के दिनों में सात्त्विक आहार लें और अन्न का त्याग करें।
4. पाठ के समय लाल आसन पर बैठें और पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पाठ करें।
महाकाली तंत्र के संपर्क विवरण
अधिक जानकारी, व्यक्तिगत मार्गदर्शन, और तांत्रिक साधनाओं के लिए महाकाली तंत्र से संपर्क करें:
वेबसाइट: www.mahakalitantras.org
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इस विधि-विधान का पालन करते हुए माँ दुर्गा की आराधना करने से साधक के जीवन में शांति, समृद्धि, और शक्ति का संचार होता है। माँ दुर्गा की कृपा से साधक सभी प्रकार की बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों से मुक्त होकर आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करता है।
जय माँ दुर्गा जय महाकाली
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