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कबीला शाबर मंत्र साधना की दिशा और महत्वपूर्ण निर्देश



कबीला शाबर मंत्र साधना की दिशा और महत्वपूर्ण निर्देश


मंत्र:


"कबीला कबीला जाट बाबा कबीला।

काली का ******, काली के धाम का वासी।

जो जपे सो पाए सिद्धि, कबीला कबीला आवे धावे।

जय भैरव, जय कबीला, शीघ्रं आवह आवह।

भैरव सवारी मेरे तन में प्रवेश कर।

***** कबीला फट्।"


1. साधना की दिशा:


दिशा: यह साधना उत्तर दिशा या पूर्व दिशा की ओर मुख करके की जानी चाहिए।


उत्तर दिशा भैरव बाबा की शक्ति और आध्यात्मिकता के लिए उत्तम मानी जाती है।


पूर्व दिशा को नए अवसरों और आत्मिक जागरूकता का प्रतीक माना जाता है।



भैरव बाबा के चित्र या मूर्ति: साधना के दौरान भैरव बाबा की मूर्ति या चित्र को अपने सामने रखें, जिससे उनका ध्यान करते समय ध्यान केंद्रित रहे।



2. महत्वपूर्ण निर्देश:


महाकाली तंत्र से जुड़े बिना यह साधना न करें:

यह साधना अत्यधिक शक्तिशाली और गूढ़ तांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। बिना योग्य गुरु या मार्गदर्शन के इसे करने से आप पर अनियंत्रित ऊर्जा का प्रभाव हो सकता है, जिससे मानसिक और शारीरिक नुकसान हो सकता है।

महाकाली तंत्र से जुड़े रहकर यह साधना करने से आपको उचित संरक्षण और मार्गदर्शन मिलेगा, जो आपकी सुरक्षा और सिद्धि सुनिश्चित करेगा।


गुरु की दीक्षा आवश्यक: तांत्रिक साधना में गुरु का आशीर्वाद और मार्गदर्शन सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस साधना को करने से पहले महाकाली तंत्र के अंतर्गत एक योग्य गुरु से दीक्षा लेना अनिवार्य है।



3. साधना के अन्य नियम:


साधना शुरू करने से पहले, गुरु से आशीर्वाद और अनुमति लेना सुनिश्चित करें।


हर साधना के बाद, भैरव बाबा और गुरु को धन्यवाद करें और आभार प्रकट करें।


साधना के दौरान किसी प्रकार की अशुद्धि से बचें, और अपनी मानसिक स्थिति को सकारात्मक और स्थिर रखें।



4. सावधानियाँ:


साधना के समय एकांत और ध्यान: साधना के दौरान अकेले रहें और ध्यान केंद्रित रखें। बाहरी विघ्न से बचें।


शुद्धता: किसी भी तरह की अशुद्धि (शारीरिक, मानसिक, या वातावरणीय) का साधना के दौरान ध्यान रखें।


महाकाली तंत्र के मार्गदर्शन में रहें: यह साधना केवल महाकाली तंत्र से जुड़े हुए साधकों के लिए सुरक्षित और प्रभावशाली है। इसलिए बिना उचित मार्गदर्शन के इसे न करें।



5. लाभ:


भैरव बाबा की कृपा और अंश शक्ति की प्राप्ति।


नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा और जीवन में शांति का अनुभव।


साधक के आत्मिक विकास और सिद्धियों की प्राप्ति।



निष्कर्ष:


इस साधना को अत्यधिक सावधानी, विधि-विधान और गुरु के मार्गदर्शन में करना अनिवार्य है। बिना महाकाली तंत्र से जुड़े हुए यह साधना न करें, क्योंकि इसका अनुचित प्रयोग हानिकारक हो सकता है।



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